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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट
जस्टिस संजय
द्विवेदी की
एकलपीठ ने
अपने अहम
आदेश में
कहा है
कि तथ्यों
को छुपाना
न्यायालय से
धोखाधडी के
समान है.
इसके बाद
याचिकाकर्ताओं के
खिलाफ दर्ज
आपराधिक प्रकरण
को निरस्त
के निर्देश
जारी किए
गए.
जबलपुर।
याचिकाकर्ता विकास मोदी व अरविंद जैन की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि वह मैसर्स वैशाली बिल्डर्स एंड डेवलपर्स में साझेदार हैं. सुनील ताम्रकार भी उनकी कंपनी में साझेदार था. उन्होंने टीकमगढ़ में वैशाली रेजीडेंसी नाम परियोजना प्रारंभ की थी. परियोजना के तहत उन्हें आवासीय डुप्लेक्स बनाना था. सुनील ताम्रकार उपद्रव कर परियोजना की प्रगति में बाधा डाल रहा था. जिसकी शिकायत उन्होंने पुलिस में की थी. पुलिस ने उसके खिलाफ प्रकरण भी दर्ज किया था.
पहली बार
कोर्ट में
सिविल केस
लगाया
इसके बाद
सभी साझेदारों
ने सुनील
ताम्रकार को
फर्म की
साझेदारी से
हटाने के
लिए न्यायालय
में सिविल परिवाद
दायर किया.
इस पर
सुनील ने
उनके खिलाफ
न्यायालय में
परिवाद दायर
कर दिया.
सुनील ने
उक्त परिवाद
स्वेच्छा से
वापस ले
लिया था.
जिसके कारण
न्यायालय ने
परिवाद को
खारिज कर
दिया था.
इसके बाद
सुनील ने
उन्हीं तथ्यों
व शिकायत
के साथ
दूसरा परिवाद
दायर कर
दिया. सुनील
ने दूसरी
शिकायत में
पहले दायर
किये गये
परिवाद तथा
उसे वापस
लेने का
उल्लेख नहीं
किया था.
हाईकोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट
के आदेश
का हवाला
दिया
ट्रायल कोर्ट
ने परिवाद
की सुनवाई
करते हुए
उनके खिलाफ
आपराधिक प्रकरण
दर्ज किये
जाने के
आदेश पारित
कर दिये.
याचिका में
दर्ज की
गयी एफआईआर
खारिज किये
जाने की
राहत चाही
गयी थी.
एकलपीठ ने
सुनवाई के
बाद सर्वोच्च
न्यायालय के
आदेश का
हवाला देते
हुए कहा
कि दूसरी
शिकायत पर
असाधारण परिस्थितियों
में सुनवाई
की जाती
है. याचिकाकर्ता
को दूसरी
शिकायत करने
का कानूनी
हक है.
इस मामले
में याचिकाकर्ता
ने तथ्यों
को छुपाकर
दूसरी शिकायत
पेश की
थी.